( तर्ज - वारी जाऊँरे साँवरिया ० )
इस मायामों आकर भटका ,
लटका क्यों पियारे ! ॥टेक ॥
यह मायाका झूठ पसारा ,
देखत भूला जग यह सारा ।
जमराजाके मार पड़े
तब हारिया रे || १ ||
बालापन खेलनमें खोया ,
तारुण विषयोंमें भरमाया ।
बूढेपन खाँसीके
झटके लागिया रे || २ ||
जो करना था कछु नहि पाया ,
नाहक अपनी उमर गमाया ।
इह लोकों परलोको
दुःख लगा लिया रे || ३ ||
सारे जगकी है यह रीती ,
बिरला पावे समझ सबूती ।
तुकड्यादास कहे सुध लेलो
मान पियारे ! ॥४ ॥
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